शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

फ़िर होंगे अपनों के मौसम

थोड़े समय थोडी छाँव मैं बैठ लेते हैं. अपनों की .अपने कितने हैं वो,इस पर बात नहीं। कितनी देर को हैं, इस पर भी नहीं। सपने से मतलब है,सच है कि नही इससे नहीं। कोई कुछ पढ़ रहा है,लिख रहा है कोई। या कहानी, या और कुछ। अंजुरी में पानी घर लाते-लाते चू जाना ही था। छाँव कब तक रहती ?काम में लगते हैं फ़िर। काम और आराम। बातें किससे करे? 'सुनता नहीं कोई कहता नहीं,--------ऐसा लगता है यां कोई रहता नहीं'-----अपने सर को अपने कंधे पे रखकर खो रहे हैं कहीं ।

1 टिप्पणी:

हिन्दी ब्लॉग जगत

समर्थक

मेरे बारे में

उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
कुछ खास नहीं !