मंगलवार, 5 मई 2009

घूमती हुई धरती रुका हुआ मैं

मेरे खामोश रहने की न कोई वजह होती है न कुछ करने की। जैसे मेरे होने न होने की। क्या मैं और क्या मेरी बिसात। नहीं है वो कोई पायदान, जहाँ खड़ा हूँ मैं। एक आवाज है जो होती रहती है। कोई इसे मेरी समझ लेता है। हँसता रहता हूँ मैं । हंसाता हुआ सबको, लोग तो यही मानते हैं। खारिज होता हुआ मैं दर्ज होता हूँ किसी -२के जेहन में ,यूँ ही खामखाह।

2 टिप्‍पणियां:

  1. हूं... तो लम्बी चुप्पी का ये स्पष्टीकरण है ? ...अच्छा है !

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  2. वाह, क्‍या बात है। यकीन जानिए अली भाई, आपके ब्‍लॉग का नाम बहुत ही प्‍यारा है।

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    SBAI TSALIIM

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