रविवार, 14 फ़रवरी 2010

फेशन दिसैनरों लो तुम जीते तुम्हारी अम्मा हारीं

रोज के रोज पांव चप्पल में जैसे घुस जाते है , में घुस जाता हूँ नरक में। थूक से थकी सड़कें, जींस में फंसी टाँगें.बास मारते स्पोर्ट्स शू ,मोबइल में घुसे खोपड़े ---- में सड़क पर धुआं उगलते वाहनों को सहन कर सकता हूँ पर ये बत्तमिजियां और मूर्खताएं --- । तुम आज मुझसे और कुछ नहीं कहलवा सकते।

2 टिप्‍पणियां:

  1. "तुम आज मुझसे और कुछ नहीं कहलवा सकते "

    जबरदस्त ...बहुत खूब !

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  2. हम तो मूर्खों से दोस्ती की थी,पर वह मुझे हरी घास ही समझता रहा . मैंने याद किया - एक गैबार को , एक भैंस को ... और दुबारा उसकी और देखनी की हिम्मत नहीं हुई .

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