मंगलवार, 26 जनवरी 2010

गरबा रमा होगा ठुमके लग रहे होंगे

में उपवास रखना चाहता था, उनने भुखमरी दे दी। में देश पे मरना चाहता था। उन्होंने हत्या कर दी। में लुटेरों को पकड़ना चाहता था। उन्होंने एन्कौन्त्तर कर दिया। हद तो तब हो गयी , जब में सोचना चाहता था,उन्होंने लाफ्टर शो शुरू कर दिया। एक पागल दौड़ पड़ा गाली देता हुआ, उस तरफ, जिधर भेड़ियों ने शिकार दबा रखे थे।

4 टिप्‍पणियां:

  1. "हद तो तब हो गयी , जब में सोचना चाहता था,उन्होंने लाफ्टर शो शुरू कर दिया।"

    बहुत खूब !

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  2. 'कहीं नहीं है,कहीं भी नहीं लहू का सुराग
    न दस्त-ओ-नाख़ुन-ए-क़ातिल न आस्तीं पे निशान
    …………………………………………………………………………………………'

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