मंगलवार, 19 जनवरी 2010
हाँ जय तुम समझ में नहीं आते ये तुम्हारी गलती है
कवि हूँ मैं, अब में ये भी भूल गया हूँ। कविता की- सी क्रिअतिविटी मेरे लगभग सारे कामों में रच-बस गयी है। और ये भी इतनी घुल-मिल कर, कि पहचान अपनी , एक फालतू, आलसी, घमंडी, मजाहिए-सी बन गयी है। छोरों पर तनी रस्सी या कि मैं, कि मेरी कविता, कि दीवारों को जोड़ कर कमरा बनाती, कि उन्हें तोड़कर सरहदों के पार भांगड़ा करती कि रोटियों को खूब सेकती, तन्दूरों के ठन्डे पड़ने पर भी। में ये भी सिर्फ भूला ही हूँ, ऐसा भी कहाँ। कवि , निराश आँखों में उम्मीद से ज्यादा देने वाले का विशेषण, नाम है, या कि एक फालतू, आलसी मजाहिये का नाम।
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"कवि , निराश आँखों में उम्मीद से ज्यादा देने वाले का विशेषण, नाम है"
जवाब देंहटाएंबस इतने तक सहमत !