उम्र का विचार नहीं होना चाहिए। हमारे सोचने,काम करने .रिस्क लेने की क्षमता को , ये प्रभावित करता है। खास तौर पर इस देश में। और खास तौर पर बड़ी या बूढी अवस्था में। बीमार जीवन इस सोच की देन है।नए काम,जानकारी, भाषा और कुछ ऐसा ही कुछ नया सीखने , समझने से मुंह फेर लेने का चलन है। जीवन वहां से फिर एक नई कहानी बुनो।
डाक्टर साहब यूं तो आपने बहुत सीरियस और सार्थक बात कही है पर... समय ही कुछ ऐसा है की हमें आपकी पोस्ट पढके नारायण दत्त तिवारी याद आ गए ! फिर भले ही ये हमारे जीवन की बीमार सोच हो!
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