मंगलवार, 13 अक्टूबर 2009

नींद की सुरंग

'मैं नदी को मारकर लौट कर आया
तैरना न सही चलना तो जानता था '

2 टिप्‍पणियां:

  1. मान गये महाराज , आप मानव हैं और इस वक्त धरती पर राज कर रहें हैं. कभी यही गुमान मैंने भी पाला था . आज भी कहीं-कहीं मेरी हडियाँ मिल जाती हैं.-
    जुरासिक युग से का एक प्राणी .

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  2. उसे उम्मीद अब भी है
    कहीं तुम फिर से लौटो तो ?

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