हाँ, वो युग मेरा
वर्तमान । और वर्तमान का विभाजन भूत,वर्तमान और
भविष्य। विभाजन के पार कोई आवाज की तरह ,बल्कि आलाप की तरह धनुषाकार में प्रस्थित । तीर बना
कर मुझे , अपने आपको पूरा खींचकर छोड़ दिया है। पराजय की लकीर बनता हुआ धंस गया हूँ परिवर्तित होता हुआ पुनः संघर्ष हेतु युग की प्रचलित संधि -रेख पर।
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