बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

तुम्हारा है तुम्ही ले लो -------------------ओबामा , नोबल ठुकरा दो और नोबल हो जाओ

'कितना वाहियात लगता है सुनकर
हमें वोट देने का अधिकार है '

3 टिप्‍पणियां:

  1. इससे भी ज्यादा वाहियात लगता है कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं . ओबामा ऐसा नहीं करेगा , सवाल ओबामा का नहीं , चमचा-धर्म के आदर का भी है.

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  2. ये जनाब कृष्णवर्णी जनसँख्या के प्रतिनिधि हैं और इन्होने रच लिया है , इतिहास अमेरिका के राष्ट्रपति बन कर ! क्या फर्क पड़ता है जो इन्हें नोबल पुरुस्कार नहीं मिलता !
    नोबल पुरुस्कार ठुकराने की आपकी अपील उम्मीद करता हूँ महज इसलिए की गई होगी क्यों की यह शांति के नाम पर पहले ही कई युद्धपिपासु राष्ट्रपतियों /राजनेताओं को दिया जा चुका है ? और फिलहाल ओबामा आदमखोर राजनेता नहीं हैं !

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  3. त्याग में एक बड़प्पन है मगर दिए गए सम्मान को सम्मान देना भी बड़ी बात है. ठुकराने या रूठने की राजनीति भी अपरिपक्वता की ही निशानी है

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