सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

और वे बाढ़ -क्षेत्र के दौरे पर

बोरिंग में गिर रही हैं हमारी आवाजें । आवाज को बुलाती आवाजें। दिशाओं से आ आ कर गिरतीं । थकी हुई कोशिशें। भूखी आवाजों को कहाँ आदत ऑक्सिजन की। युद्ध जब होंगे तब होंगे, अभी सेना तैनात बोरिंग पर। और हम रियलिटी शो पर।

2 टिप्‍पणियां:

  1. जिसे सभ्यता कह कर इतराते हैं हम, उसमें बड़े-बड़े छेद हैं। कि हमारी फितरत वही है, जिसका संकेत डार्विन ने दिया था। फिर तो खाओ, पीओ, मैथुन करो और मर जाओ... काहे की चिंता ! कभी कोई बेहतर मानव-सभ्यता बनेगी तो हम पशु श्रेणी में असानी से डाल दिये जायेंगे। तब शो सच में रियल होगा।
    दिमाग को झकझोर देते हैं आपके विचार।
    धन्यवाद।
    रंजीत

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