बुधवार, 23 सितंबर 2009

अख़बार आ गया क्या?

लोकतंत्र मतदान के साथ सभी के जागरूक रहने का नाम है। पढ़े -लिखे हम सभी की दुनिया देश के भीतर विदेश की सी है। अपने कुकर की सीटी आ गई , स्कूल की बस आ गई , चलो.चलो, चलो।

2 टिप्‍पणियां:

  1. अपना अखबार आ गया पढो पढो ! सब कुछ यंत्रवत सा , काहे का लोकतंत्र ? कैसी जागरूकता ? मेरे भाई मुझे तो ये भीड़तंत्र सा लगता है याकि भेड़चाल तंत्र ! सच कहूं तो ये सारे नुमाइन्दे ही एलियंस जैसे लगते है ! कुछ यूं कहलो भीतर बाहर सब कुछ .....?

    एक और टीप :
    कृपया रिक्त स्थान अपनी सुविधा अनुसार भर लें !

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  2. इस "चलो' के इतर कोई चलना नहीं ... जी हां, अखबार आ गया, स्कूल की बस आ गयी, ऑफिस का टाइम हो गया अ ौर सोने का भी ... जिंदगी पूरी हो गयी, जीवन धन्य हो गया... हाय !

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