मंगलवार, 8 सितंबर 2009
चिल्लाती बर्फ से क्यों पिघले दिल्ली
हम सुनते आए हैं,बिना रोये माँ भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती। इस बात को हम मांग,आन्दोलन ,सब पे लागू कर देते हैं। अन्तर जब कि यह है कि माँ बच्चे को आत्मा से चाहती है। देर से ही सही ,दूध पिलाएगी ही। सरकार ,कंपनी ,सेठ माँ की तरह जब हैं ही नही,तो मांग पूरी वो करेगी ही क्यों। हमारे लिए यही बहुत है कि गणेश जी ,राम जी ,दुर्गा जी की पूजा कर लें,उपवास रख लें । ये देश नहीं ,सिक्स पॉकेट जींस है। कंगा करो। पाउच खाओ। बाइक चलाओ। बस ये ध्यान रखो कि झंडा सीधा लगा है ,फटा तो नहीं है। राष्ट्र-गीत गाते समय हम हिले तो नहीं हैं।
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जय भाई, आपने दिमाग को भेद दिया। कविता की आत्मा पर लिखा हुआ गहरा व्यंग्य। लेकिन हम नहीं समझेंगे। झंडा ऊंचा रहे हमारा ! जय हिन्द !
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