बुधवार, 2 सितंबर 2009
दीवार पर टंगे हुए इसके नियम -धरम
कुछ लिखना जरुरी नहीं लगता। ख़ुद से बात करना हो तो वो हो ही जाती है। -----एक बात देखता हूँ। अपना अनुभव बताते , समझाते हैं कुछ लोग। उस पर ख़ुद अमल नहीं करते । ये ,बहुत हद तक अपना बड़प्पन जतलाने.थोपने के लिए होता है। तब जब कि ये समझ में आ रहा हो, हास्यास्पद हो जाता है। बोलने ,लिखने ,समझाने के नियम हवाई जहाज चलाने के नियम -पालन की तरह होना चाहिए। ये नियम व्यवस्थित रूप से पढाये भी जायें , छोटी कक्षाओं से ही। संगीत भी सिखाया जाता ही है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
हिन्दी ब्लॉग जगत
समर्थक
मेरे बारे में
- जय श्रीवास्तव
- उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
- कुछ खास नहीं !
ऐसा हो जाये, तो सच में क्रांति आ जायेगी। हालांकि कहने-वाचने वाली की यह नैतिक जिम्मेदारी है। अगर हम सिर्फ कह रहे हैं और अमल नहीं कर रहे, तो हममें और तोता-रटंत में कोई फर्क नहीं।
जवाब देंहटाएं