डल झील --शिकारा आगे बढ़ रहा है। फरेन में लिपटा कश्मीर ठंडा कर रहा है। मेरी खुली उँगलियों को। सबको। चप्पू चलने की गति मुझे नियंत्रित कर रही है। अब तक जीने की थकान---कुल थकान झील में ,उसकी हरियाली में जाती हुई ,बिदा होती हुई दिख रही है। शिकारे के हिचकोले के साथ निथरता हुआ , मैं पहाडों का अभिवादन कर रहा हूँ । मस्तक-मुक्त मैं नत हूँ।
सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंब्लोग का नाम बहुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएं