शासन कभी जनहित में नहीं किया जाता। कोई -सा तरीका हो,जनहित शासक के ख्याल में भी नहीं होता। लोकतंत्र सबसे बड़ा तमाचा है । जाल फेंकने की कला है। करोड़पतियों की संसद। धोके में नहीं कोई। अठारह बरस ,ऊँगली पर तिलक,पॉँचसाल सब बेमानी। जीने वालों ,भरोसे पर , तुम्हारा तो अब भगवान भी खरा नहीं।
इस मुद्दे पर हम सहमत है !
जवाब देंहटाएं.............बुद्धिजीवी ... ?
असहाय / गणतंत्र में व्यर्थ हो चुके !