फासले पर होती है सब चीजें.मैं रह पाता हूँ इसीलिए। कदम लडखडाते हैं। बैठ जाता हूँ. . एक अशांत जल शांत -सा मोटी परत जल की शांत। परचम नहीं फहरा रहा,उदासी का। एक ज़ोन तैयार करता हूँ..कुछ मना है इसमे। वो तुम जानो या हम। रोना, हँसना,निराश होना,सर झुकाना, सोचना ---.इन सबके बीच से निकलता है हम जैसों से मिलने का रास्ता.मैं खुश हूँ.कोई मुझ तक जमीं पर रहता हुआ
नहीं आता.राडार पर तो खेर नजर नहीं आता.जल की मोटी परत के नीचे अशांत जल जरुर पारे –सा बिखर रहा है .संवाद होता है.सहन-सहन.वैसे भी मैं पहलु बदलता कहाँ हूँ।
achcha hai
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