रविवार, 20 जून 2010

रंग ऊँगली में लगा था. साफ करने को रगडा तो और फ़ैल गया. सोचा ही तो  था थोडा ,उनके  बारे में , रहा हूँ तब से  सोच --उन्ही के बारे में .वो क्या कर रही होगी अभी .क्या पहने होगी . जाने को होगी कहीं या कि आई होगी. मेरा ख्याल होगा उसे कि नहीं. मेरी छुअन होगी कि धुल गयी होगी. जो पंछी बना रही थी वो कहीं से और गहरा किया होगा कि रहने दिया होगा. निगाह तक रही होगी राह मेरी या कि गिरा पड़ा मेरा ध्यान पौधों को दिए पानी में बह गया होगा. गुजरते वक्त की रोशनाई से   भविष्य की लिखाई  अधूरी तो रह ही जानी है.

3 टिप्‍पणियां:

  1. Pyar me shayad aisi hee adheerta rahtee hai...nihayat sundar abhiwyakti..

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  2. "गुजरते वक्त की रोशनाई से भविष्य की लिखाई अधूरी तो रह ही जानी है."
    हमेशा की तरह बेहतरीन ! भाई शीर्षक को आलेख के साथ टाइप करके ऊपर पेस्ट कर दिया करो , हिन्दी में बना रहे तो अच्छा लगता है !

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  3. यादों को बयाँ करती खूबसूरत पंक्तियाँ...

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