सोमवार, 28 जून 2010

रोक सके हम आखिर उन हवाओं को जो उड़ा ले जाना चाहती थी तुम्हारे खतों को .थोड़ी सी छोड़ी उसमें से , तुम्हारे आँचल के लहराने के लिए. तुम्हारी जुल्फों के बल खा के फ़ैल जाने के लिए. हवा तुम एक काम करो. उन्हें जल्दी से ले आओ.तब तुम लेकिन रोके से भी ना रुको.

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