बुधवार, 16 जून 2010

साँस की तरह सिलसिलेवार मैं  ना हो सका. ख्वाहिशों की तरह का हल्का बोझ मैं ना ढो सका .सूखी पत्तियों के टूटे आकार की तरह के समय मैं मुहासों भरा आकाश कहाँ तक छिपाऊं.. ,

2 टिप्‍पणियां:

  1. डाक्टर साहब कई बार जी चाहता है कि आपकी जुबान से शब्द हड़प लूं !

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  2. Ali sahab se sahmat hun! Sirf ek wartani ki bhool lag rahi hai...'Me' ki jagah 'mai' hona tha..ise anyatha na len!

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