आवाज किसी ने दी नहीं थी। अपना अर्थ निकालते हुए जो हमने सुनी थी। स्पर्श सुनाई दिया था। पांचों पोरों पर। अंगूठा संकोची था। बड़ा भाई। ---। इतना अँधेरा , कि उजाला था , पल से ज्यादा भर को। और मैं हाथों में था उसके एहसास के। ---। तब के मतलब के किनारे पर अब का , ये मतलब कुछ सीला- सा था। चलता कहीं को। होता कहीं पर। सब के लिए बन के कुछ तो भी , अर्थ हीन भार, ये , मैं , हो रहा व्यतीत ---। क्रमश:
बहुत सुन्दर , अत्यंत विचार परक ! साधु !
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