जिंदगी पीठ पर रखो तो बोझ हो जाती है. दिमाग में रखो तो तकलीफ. हाथ की रेखाओं में ये तक़दीर हो जाती है. -----मुंह फेर लें इससे तो ये रह जाती है ------बस एक लकीर। लकीर । खिंची हुई। जिंदगी सी। खींचकर ले जाई जाती हुई। इसके डेश बना दें हम, काट-काट कर । एक-एक को फ़िर फुटबाल बना कर सोंप दें दुनिया को ।
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