बुधवार, 21 जनवरी 2009
देश ---तुम्हारा कोई घर- बार नहीं है क्या
चबूतरे जुड़े होते थे। सुबह- शाम पड़ोसी से हाल- चाल ,यहाँ- वहां की बातें, घटनाएँ, हमारी जिंदगी का जीवंत हिस्सा होती थीं । बच्चे ,बड़े बच्चे, खेलते- दौड़ते थे। अख़बार सबका होताथा। सब सबके होते थे। धूप -छाँव से घड़ी -सा अंदाज होता था। दूध, जामन, शकर, चाय- पत्ती ,अचानक जरुरत पर दी- ली जाती थी। नव-जातों की किलकारी पड़ोस की दीवारों के पार आती- जाती थी। ------चबूतरे गायब। पड़ोस गायब। वो घड़ी, वो लेन -देन गायब। जीवन, समाज सब गायब। ------अब मैं हूँ। मेरा ये है। मेरा वो है। ---मेरी बाइक ,मेरा मोबाईल ,मेरी जींस ---मेरा फ्लेट, मेरी बीवी, मेरे बच्चे। -----देश, समाज ,तुम बाद में मिलना, अभी मैं मल्टी-प्लेक्स जा रहा हूँ।
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मेरे बारे में
- जय श्रीवास्तव
- उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
- कुछ खास नहीं !
ये सब अभी तक इतिहास ही हुआ है ! जब समय इसे पुरातत्व बनादेगा ! तब बाबू इस पर व्याख्यान दे सकेगा !
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