मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

कुछ नहीं किया

अपनी -२ दुनिया है । उसमें रहते हुए पूरी पारी खेल जाते हैं । हम कभी उल्टे पाँव नहीं चले । हम कभी बेहोश नहीं हुए। हमारी रूचि के रंग नहीं बदले। शब्दों को कोई नए अर्थ नहीं दिए। हमने जस की तस धर दीनी चदरिया।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आप के ब्लॉग पर आना शुरू किया है अच्छा लिख रहे हैं ,
    आप स्वभाव से अच्छे इन्सान लगते हैं !

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  2. प्रिय अनाम , आपको धन्यवाद .इस नाचीज़ को आपने इज्ज़त दी . मैं धडकता रहा ज़ोर - ज़ोर से , निकलते गए लोग लांघ कर.......लांघ कर .

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  3. काश कि दिन .. सारे दिन .... सारे के सारे दिन,
    ....... लगातार .... हमेशा ... हमेशा !
    तितलियों से हो जायें और सब ......हम सब की जिंदगियों में रंग भर दें !

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