मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

परस्पर से परे लेकिन अब व्यक्त

मुझे पता था। लकीरों से शब्द पैदा नहीं होते। उन्हें बढ़ाना और मोड़ना पड़ता है। मैं लकीर का काम कर रहा हूँ।बढ़ता और मुड़ता मैं भीतर से अब बाहर आ रहा हूँ। हो रहा हूँ व्यक्त। अभिव्यक्त। तुम मुझे देखो । मैं तुम्हें दिखाई दूंगा।

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