शनिवार, 28 अप्रैल 2012

मज़ार

में सजदे में
 झुका हुआ था
 मज़ार थी कि उठकर चल दी .

4 टिप्‍पणियां:

  1. मज़ार है कि उठ कर चल दी!
    गज़ब का विरोधाभास!!

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  2. समर्पण को अस्वीकार करने की इन्तहा है !

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  3. devendrji,अली सब,क्षमा जी.कोमेंट के लिए शुक्रिया. पसंद के लिए भी.क्षमा जी ,"जय की बातें",ब्लॉग भी देखें

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