शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

मत पढो जोर से कि बच्चा सो रहा

हाँ, वो युग मेरा वर्तमान । और वर्तमान का विभाजन भूत,वर्तमान और भविष्य। विभाजन के पार कोई आवाज की तरह ,बल्कि आलाप की तरह धनुषाकार में प्रस्थित । तीर बना कर मुझे , अपने आपको पूरा खींचकर छोड़ दिया है। पराजय की लकीर बनता हुआ धंस गया हूँ परिवर्तित होता हुआ पुनः संघर्ष हेतु युग की प्रचलित संधि -रेख पर।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिन्दी ब्लॉग जगत

समर्थक

मेरे बारे में

उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
कुछ खास नहीं !