शनिवार, 8 अगस्त 2009

हे भगवान ;तुम भी मेरे जैसे निकले

उचक के उसने कोशिश की मन्दिर की घंटी बजाने की। भगवान प्रसन्न हुए। थोडी हवा में उसने आरती की। वे प्रसन्न हुए। लेते समय गिरा प्रसाद उसने उठाकर खाया। वे प्रसन्न हुए। एक बच्चे को प्रसाद का बड़ा टुकड़ा दिया। भगवान् प्रसन्न हुए। एक ने ऐसा कुछ नहीं किया। भगवान प्रसन्न हुए।

-----भगवान को होना कहाँ था कुछ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. वो तो मन के किसी कोने में दुबक कर बैठा ख्याल सा है.... शायद .....इसके अलावा .... उसके पास कुछ भी होने का विकल्प कहाँ है ?

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  2. jee han bhagwaan tab bhee nahin aaye jab koshi me dahaye logon ke anna dalal aur officer kha rahe the.
    Ali saheb theek kahte hain. man kee galee bahut sankaree ho chalee hai...

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