शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे.

तालाब में देखा, सारा पानी खारा होने लगा। शीशे में - - -। कपड़े तार- २ हो गए। सूरज को - - - । धूप सारी लपेटकर बिखरते बादल के पीछे छुप गया। चाँद को - - - । तुम्हारी ओट में वो जाके पिघलने लगा। तुम्हारे चेहरे को हाथों में लिए उसमें ख़ुद को देखा और मैं बरसने लगा।

2 टिप्‍पणियां:

हिन्दी ब्लॉग जगत

समर्थक

मेरे बारे में

उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
कुछ खास नहीं !